हरियाणा के करनाल की रहने वालीं 23 वर्ष की कनिका मेहता 2006 में मेलबर्न के अभिषेक भसीन से शादी कर ऑस्ट्रेलिया पहुंचीं तो उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि 14 साल बाद उनकी जिंन्दगी इस मोड़ पर खड़ी होगी।
कनिका कहती हैं कि मैंने बचपन से फैशन डिजाइनर बनने की ठानी थी इसीलिए मैंने अपनी डिग्री इसी में हासिल की, मगर ऑस्ट्रेलिया ने सब कुछ बदल दिया।
वह कहती हैं, “एक अंतर्राष्ट्रीय स्टूडेंट के डिपेंडेंट के तौर पर आए व्यक्ति के लिए काम करने के अवसर बेहद कम होते हैं। साथ ही बेहद खराब परिस्थितियों में काम करने की मजबूरी भी।”

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वह बताती हैं कि उन्होंने चाइल्ड केयर में डिप्लोमा करने के बाद जब नौकरी की तो उनसे उस जगह बेहद खराब व्यवहार किया गया।
बुलींग और डिप्रेशन का दौर
“मैं रोज बुली होती थी, घर आकर रोती भी थी लेकिन मजबूरी ये थी कि उस ‘वर्क एक्सपीरियंस’ के बिना डिप्लोमा पूरा नहीं होता था। खैर वो वक्त बीता और मैंने एक अन्य चाइल्ड केयर सेंटर में नौकरी कर ली। ये बहुत अच्छा समय था।
मैं अपने सेंटर की सेकंड इंचार्ज बन गयी। हमें ऑस्ट्रेलिया की परमानेन्ट रेजीडेंसी भी मिल गयी। मुझे लगा कि अब जीवन खुशियों की बयार है।
साल 2011 में जब मेरे बेटे का जन्म हुआ तो मुझे यह नहीं पता था कि उसे भी उन्हीं मुश्किलों से गुजरना पड़ेगा।

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मेरा बेटा जब दो-ढाई साल का हुआ तो हमने उसे चाइल्ड केयर भेजा और मैं काम पर लौट गयी।
वो हमेशा मार खा कर लौटता था। उसके चेहरे पर निशान होते थे। चाइल्ड केयर के रास्ते को देख कर वो रोने लगता था।
बुलींग के डर की वजह से उसने बोलना बंद कर दिया। हमारी सुकून भरी जिंदगी में तूफान आ चुका था।
मेरी जिंदगी स्पीच थेरेपिस्ट और साइकॉलोजिस्ट की क्लीनिक के इर्द गिर्द घूमने लगी।
पूरे एक साल तक मैंने खुद को अपने घर तक सीमित कर लिया था। मेरा मकसद बस अपने बेटे को उस डर से बाहर लाना था।
जिस दिन डॉक्टर ने मुझे कहा कि आपने अपने बेटे के साथ चमत्कार कर दिया है, मैं फूट-फूट कर रोई लेकिन वो आंसू खुशी के थे, इत्मीनान के थे।
एक बार फिर लगा कि जिंदगी ढर्रे पर लौट रही है, हमने परिवार को बढ़ाने का फैसला लिया।
ऑस्ट्रेलिया में माइग्रेंट समुदाय के लोगों के पास बच्चों के पैदा होने के वक्त ज्यादा मदद नहीं होती है। ज्यादातर मामलों में मां-पिता या सास-ससुर आकर कुछ समय के लिए मदद कर देते हैं।

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लेकिन मेरी बेटी के जन्म के वक्त मुझे वो मदद नहीं मिल सकी और मैं ‘पोस्टनेटल डिप्रेशन’ का शिकार हो गयी।
मेरे पति अभिषेक हमेशा कहते कि बाहर निकलो मन कुछ अच्छा होगा लेकिन मैंने सबसे मिलना बंद कर दिया।
नया रास्ता मिला, जिंदगी बदली
कनिका बताती हैं कि जीवन में जब ऐसा लगता है कि इसके आगे कोई रास्ता नहीं तो शायद वो ऐसा मोड़ होता है जहां से आपको एक नई यात्रा की शुरुआत करनी होती है।
वह बताती हैं, "अभिषेक ने मेरी मुलाकात अपने दोस्त अभि दुसेजा से करवाई। अभि एक प्रोफेशनल शेफ हैं और उस समय अपनी जिंदगी के मुश्किल दौर से गुजर रहे थे। उन्होंने मुझसे बात कर फौरन का कहा कि आपको अपने डिप्रेशन से बाहर आने के लिए कुछ करना पड़ेगा।
हमने बहुत सोचा और फिर साथ मिलकर काम करने का फैसला किया।

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साल 2018 में मैंने और अभि दुसेजा ने मिलकर “फिटनेस तड़का” नाम की कम्पनी शुरु की।
हिंदुस्तानी खाने को साधरणतः स्वादिष्ट तो माना जाता है लेकिन कैलरीज से भरपूर भी। हमारी कोशिश ये है कि किसी को भी स्वाद छोड़े बिना स्वास्थ्य से समझौता न करना पड़े।
हमारा खाना ऑस्ट्रेलिया के मानकों पर खरा उतरे, इसके लिए मैंने ‘न्यूट्रिशन और वेटलॉस’ में सर्टिफिकेट-4 भी किया।
बाकी अभि दुसेजा ने अपने जादू का इस्तेमाल कर भारतीय खाने की एक बड़ी रेंज सामने रख दी।
पहले कुछ महीने हम सब कुछ खुद ही करते थे - सब्जी लाना, काटना, बनाना, पैक करना और फिर डिलीवरी।

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अपनी मेहनत की बदौलत पहले साल में ही हम ब्रेक-इवन हो गए।
आज हमारे पास 6 लोगों का स्टाफ है और दो डिलीवरी ड्राइवर हैं। हम पूरे मेलबर्न में 'फिटनेस तड़का' का खाना हफ्ते में दो बार सप्लाई करते हैं।
मैंने ये पहले ही सोच लिया था कि किसी महिला को काम की जरुरत होगी तो हमारे दरवाजे हमेशा खुले रहेंगे।
आज मेरे साथ काम करने वाले लोगों में आधी महिलाएं हैं।
अब दूसरों की मदद
वह कहती हैं कि जो कनिका एक वक्त डिप्रेशन के कारण घर में बंद रहती थी, आज वह दूसरी महिलाओं को अपने साथ जोड़कर समाज में मुकाम हासिल करने में मदद कर रही है।
कनिका कहती हैं, "यह सबकुछ भगवान की कृपा, मेरे पति अभिषेक के सहयोग और उनके दोस्त और अब मेरे बिजनस पार्टनर अभि दुसेजा की मदद के बिना संभव नहीं था।"
उनका सबको एक ही सन्देश है कि अगर हम एक-दूसरे के साथ खड़े हों तो कुछ भी मुश्किल नहीं।