में छपी रिपोर्ट के मुताबिक ट्राइब्यूनल ने बेहद असंगत व्यवहार किया और उसके फैसले में बुनियादी समझ की कमी थी.
ट्राइब्यूनल ने एक भारतीय युवक की समलैंगिकता के आधार पर की गई प्रोटेक्शन वीसा की अपील ठुकरा दी थी, जिसे फेडरल कोर्ट की फुल बेंच ने गलत ठहराया है.
ट्राइब्यूनल के फैसले के खिलाफ जिस जज सैंडी स्ट्रीन ने इस युवक के केस की सुनवाई की थी, उन पर असामान्य संख्या में पक्षपातपूर्ण तरीके से वीसा अपील ठुकराने के इल्जाम लगे थे. हालांकि बाद में उन्हें क्लीनचिट मिल गई थी.
शरणार्थी युवक भारत के एक सिख परिवार से ताल्लुक रखता है. उसका तर्क था कि वह एक समलैंगिक है जिस कारण भारत में उसकी जान को खतरा है. अपने समर्थन में उसने १६ लोगों की गवाहियां पेश कीं जिनमें वे पुरुष भी थे जिनसे वह एक समलैंगिक डेटिंग ऐप के जरिए मिला था.
लेकिन ऐडमिनिस्ट्रेटिव अपील्स ट्राइब्यूनल ने उसे समलैंगिक मानने से इनकार कर दिया. ट्राइब्यूनल ने कहा, “समलैंगिक होने के प्रमाण झूठे हैं.”
फेडरल कोर्ट की फुल बेंच ने पूर्ण सहमति से कहा कि ट्राइब्यूनल ने बेबुनियाद धारणाओं पर अपना फैसला सुनाया. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “ट्राइब्यूनल के फैसला अव्वल दर्जे का अतार्किक और बुनियादी समझ से परे है.”
कोर्ट ने प्राइमरी जज स्ट्रीट को भी गलत बताया. इसी हफ्ते आए फैसले में बेंच ने कहा, “प्राइमरी जज ने गलती की. वह नहीं देख पाए कि ट्राइब्यूनल के फैसले १६ गवाहियों को नजरअंदाज किया गया.”
कोर्ट ने भारतीय युवक की अपील को सही ठहराते हुए फैसला सुनाया कि ट्राइब्यूनल दोबारा मामले की सुनवाई करे और इस बार सुनवाई करने वाला सदस्य अलग हो.