COVIDSafe ऐप को इन्स्टॉल करने पर उलझन में हैं? यहां हैं सारे जवाब

कोविडसेफ ऐप लॉन्च होने के बाद से ऑस्ट्रेलिया का तकनीकी तबका इसकी खोजबीन में लगा हुआ है. उन्होंने पड़ताल की है कि यह ऐप सुरक्षित है या नहीं और इसमें क्या क्या खामियां हैं. जानिए, उन्हें क्या पता चला...

The government's new COVIDSafe voluntary tracing app

The government's new COVIDSafe voluntary tracing app Source: AAP

रविवार को सरकार ने कोविड-19 के मरीजों की निगरानी करने वाली ऐप COVIDSafe को लॉन्च किया और एक दिन में ही लगभग लाखों ऑस्ट्रेलियाइयों ने इसे डाउनलोड कर लिया.

इस ऐप का मकसद है करोनावायरस से संक्रमित लोगों की आवाजाही का पता लगाना और उसे स्वस्थ लोगों तक पहुंचाना ताकि संपर्क कम से कम हो.

ऐसा करने के लिए ऐप ब्लूटूथ तकनीक का इस्तेमाल करती है. जब इस ऐप के दो यूजर 15 मिनट से ज्यादा एक दूसरे के साथ रहते हैं और उनके बीच की दूरी 1.5 मीटर से कम हो तो उनका रिकॉर्ड दर्ज हो जात है. अगर किसी यूजर को करोनावायरस संक्रमण होता है तो वह उन लोगों की जानकारी अधिकारियों के साथ साझा कर सकता है, जो उसके संपर्क में हैं.

स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि यदि बड़ी संख्या में लोग इस ऐप को डाउनलोड करते हैं तो करोनावायरस के खिलाफ लड़ाई में यह जानकारी बहुत कारगर हो सकती है. लेकिन कुछ तकनीक विशेषज्ञों ने निजता के हनन की चिंता भी जताई है. उन्हें डर है कि इस ऐप के जरिए जुटाया गया डेटा किस तरह इस्तेमाल किया जाता है.

पिछले हफ्ते इस ऐप के रिलीज होने से पहले हमने बताया था कि यह तकनीक अब जबकि COVIDSafe डाउनलोड करने के लिए उपलब्ध है, तो जानिए कि विशेषज्ञों की इसे इन्स्टॉल करने को लेकर क्या सलाह है.

ऐप के लॉन्च होने से पहले तकनीकी विशेषज्ञों और निजता के हक के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने मांग की थी कि पूरा सोर्स कोड सार्वजनिक किया जाए. इसके जरिए निष्पक्ष विशेषज्ञ पता लगा सकते हैं कि ऐप में कोई समस्या है या नहीं और फिर उसके हल भी बता सकते हैं. तभी यह भी सुनिश्चित हो सकता है कि सरकार जो वादे कर रही है, ऐप वैसी ही है या नहीं.

सरकार ने सोर्स कोड जारी नहीं किया. लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ग्रेट हंट ने सोमवार को एबीसी को बताया कि दो हफ्ते में यह कोड सार्वजनिक कर दिया जाएगा.

अब जबकि कोड के जारी होने का इंतजार किया जा रहा है तो ऑस्ट्रेलिया के सॉफ्टवेयर डिवेलपर्स ने ऐप की चीर-फाड़ करनी शुरू कर दी है. रिवर्स-इंजीनियरिंग के जरिए वे लोग ऐप के बारे में पता लगा रहे हैं और अपनी जानकारियों को सोशल मीडिया पर साझा कर रहे हैं.
रविवार को सॉफ्टवेयर डिवेलपर मैथ्यू रॉबिन्स ने ऐप के ऐंड्रॉयड वर्जन का सोर्स कोड डाउनलोड कर लिया और उसे डिकंपाइल भी कर लिया.

10 साल से सॉफ्टवेयर में काम कर रहे मैथ्यू पिछले आठ साल से ऐप बना रहे हैं. वह प्राइवेसी के तो विशेषज्ञ नहीं हैं लेकिन इस बारे में बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि ऐप कैसे बनाई जाती हैं और वे कैसे काम करती हैं. इसलिए वह बता सकते हैं कि जैसा सरकार कह रही है, यह ऐप वैसे ही काम करती है या नहीं. लॉन्च होने के बाद ये मैथ्यू और उन जैसे कई सॉफ्टवेयर डिवेलपर्स COVIDSafe ऐप के कोड को समझने की कोशिश कर रहे हैं.

इन लोगों ने जो जानकारियां निकाली हैं, उनमें से कई तो सकारात्मक हैं. ट्विटर पर रॉबिन्स ने लिखा है कि ऐप वैसे ही काम करती है जैसा सरकार ने कहा है. यह डेटा यूजर के फोन में सेव करती है जिन दूसरे फोन में ऐप इन्स्टॉल की गई है, उनसे सिर्फ सिग्नल रिसीव करती है. 21 दिन बाद सारा डेटा डिलीट हो जाता है. स्वास्थ्य अधिकारियों को डेटा तभी भेजा जाता है जबकि यूजर की इजाजत हो.

ऐप यूजर की लोकेशन भी रिकॉर्ड नहीं करती. यदि आप ऐंड्रॉयड यूजर हैं तो ऐप इन्स्टॉल करते वक्त ऐप आपसे लोकेशन एक्सेस के लिए पूछती है। ऐंड्रॉयड की खामी है कि जो ऐप ब्लूटूथ पर आधारित होती हैं वे अपने आप लोकेशन के लिए पूछती हैं. हालांकि COVIDSafe ना तो लोकेशन डेटा रिकॉर्ड करती है और ना पूछती है.

रॉबिन्स ने द फीड को बताया कि वह ऐप से संतुष्ट हैं.
उन्होंने कहा, “जो डेटा वे लोग जमा कर रहे हैं उसे मामूली ही कहा जा सकता है. जैसे ऐप बनाई गई है उसे लेकर मुझे काफी भरोसा है.”

हालांकि रॉबिन्स को एक-दो चीजें मिली हैं जिन्हें वह गलतियां कहते हैं लेकिन वह उन्हें जल्दबाजी का परिणाम बताते हैं.

हालांकि रॉबिन्स अब भी चाहते हैं कि सरकार पूरा सोर्स कोड जारी करे और इसमें आईओएस ऐप का डेटा भी हो क्योंकि आईओएस ऐप का डेटा निकाल पाना ज्यादा मुश्किल है. लेकिन कुल मिलाकर रॉबिन्स कहते हैं कि उन्हें कोई बहुत बड़ी दिक्कत नहीं मिली है.

“मुझे तो लगता है कि इसे इन्स्टॉल करने में कोई हर्ज नहीं है,” उन्होंने बताया.

कुछ अन्य अनुभवी सॉफ्टवेयर डिवेलपर्स ने भी इस कोड का अध्ययन किया है और वे भी कहते हैं कि लोगों को यह ऐप इन्स्टॉल करना चाहिए.

अगर आप बारीकियों को जानना चाहते हैं तो सॉफ्टवेयर इंजीनियर जेफ हंटली ने ऑस्ट्रेलिया के तकनीकी समुदाय द्वारा की गई चीरफाड़ को है.

क्या समस्याएं मिली हैं?

एक सबसे बड़ी दिक्कत तो यह है कि इस्तेमाल करने वालों को इस ऐप का तौर-तरीका समझ आएगा या नहीं. यह ऐप तभी काम करेगी जब खुली हो. आप दूसरी ऐप्स यूज कर सकते हैं कि लेकिन इस ऐप को बैकग्राउंड में हर वक्त ओपन रखना होगा.

कुछ विशेषज्ञों ने कहा है कि कुछ खास हालात में तो यह ऐप आईफोन्स पर काम करना बंद भी कर सकती है. जैसे कि जब आईफोन लो पावर मोड में हो या फिर जब बहुत ज्यादा ऐप ब्लू टूथ यूज कर रही हों तो हो सकता है यह ऐप काम करना बंद कर दे.
सरकार ने इस ऐप को इस्तेमाल करने के लिए जो सलाह दी हैं, वे विरोधाभासी हैं. कहती है कि अगर आईफोन पर ऐप लगातार 24 घंटे तक बंद रहती है तो यूजर को नोटफिकेशन भेजा जाएगा और समस्या का हल बताया जाएगा.

इस वक्त यह कहना भी मुश्किल है कि ऐप फोन की कितनी बैट्री इस्तेमाल करेगी. विशेषज्ञ इस पर एकमत नहीं हैं और इसकी सही जानकारी कुछ समय में ही सामने आ पाएगी.

हालांकि इन दिक्कतों से यूजर की सुरक्षा को कोई खतरा नहीं पहुंचता. लेकिन इनके कारण ऐप की प्रभावशाली तरीके से काम करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है. इसलिए भी विशेषज्ञ चाहते हैं कि आईओएस का सोर्स कोड जारी किया जाए ताकि वे कुछ हल सुझा सकें.

सुरक्षा को लेकर चिंताएं

विशेषज्ञों की सुरक्षा को लेकर अब भी कुछ चिंताएं हैं. लेकिन इन चिंताओं के कारण आपको ऐप इन्स्टॉल करनी चाहिए या नहीं? विशेषज्ञ कहते हैं कि यह आपके हालात पर निर्भर करता है.

पिछले हफ्ते जब ऐप लॉन्च हुई तो द फीड ने निजता के हकों के लिए काम करने वाले प्रोफेसर डाली काफर से बात की थी. काफर ऑप्टस मैक्वॉयरी यूनिवर्सिटी में साइबर सिक्यॉरिटी हब के एग्जेक्यूटिव डाइरेक्टर हैं. उन्होंने इस ऐप को लेकर कई चिंताएं जताई थीं जिनका निदान अब तक नहीं मिल पाया है.

काफर और अन्य विशेषज्ञों के मुताबिक एक बड़ी चिंता तो यह है कि ऐप से जो डेटा जुटाया जाएगा उसे एक सेंट्रल सर्वर पर अपलोड किया जाएगा. प्रोफेसर काफर ने द फीड को बताया कि जिसके पास भी इस सर्वर का एक्सेस है, उसके पास इस ऐप के जरिए जुटाई गईं सूचनाओं का भंडार होगा. अगर यह सर्वर हैक हो जाता है या कोई दुराग्रही इस सर्वर में पहुंच रखता है तो वे इस सूचना के साथ बहुत कुछ कर सकते हैं.

निजता अधिकारों के अन्य विशेषज्ञ जैसे कि एएनयू में असोशिएट प्रोफेसर वनेसा टीग कहती हैं कि ऐप क्या सूचना रिकॉर्ड और शेयर करती है, यह भी चिंता की बात है. उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलियन ऐप यह जानकारी भी स्टोर करती है कि यूजर का फोन और मॉडल कौन सा है. और थोड़ी सी तकनीकी जानकारी रखने वाला भी यह डेटा पढ़ सकता है.

टीग और उनके सहयोगियों ने सोमवार को एक ब्लॉग में लिखा, “लगता तो है कि इस बात से किसी को क्या नुकसान होगा लेकिन किसी के कॉन्टैक्ट्स का फोन और मॉडल कौन सा है, यह जानकारी काफी चीजें उजागर कर सकती है.”

टीग समझाती हैं कि अगर कोई जानना चाहे कि उसके कॉन्टैक्ट में मौजूद किसी व्यक्ति ने किसी और साझे कॉन्टैक्ट से संपर्क किया है या नहीं तो वह कोविडसेफ ऐप पर उपलब्ध डेटा से इसका पता लगा सकता है.
प्रोफेसर काफर कहते हैं कि इस ऐप से अधिकारियों को यूजर के अनुमान से कहीं ज्यादा जानकारियां मिल सकती हैं. वह समझाते हैं कि अगर एक व्यक्ति ‘क’ को करोनावायरस से संक्रमित पाया जाता है और वह अपने कॉन्टैक्स की जानकारी साझा करने पर सहमति देता है तो इससे पता चल सकता है कि व्यक्ति ख और ग आपस में मिले थे. और यह बात ख और ग को पता भी नहीं होगी कि उनकी मुलाकात के बारे में किसी और को पता है.

इसलिए प्रोफेसर काफर कहते हैं कि आप ऐप इन्सटॉल करें या नहीं, यह आपके निजी हालात पर निर्भर करता है.

वह बताते हैं, “यह जानकारी बहुत से लोगों के लिए संवेदनशील नहीं होगी. लेकिन कुछ के लिए यह जानकारी जरूरी हो सकती है. मसलन, अलग-अलग राजनीतिक दलों के दो नेताओं की मुलाकात या किसी पत्रकार कि किसी राजनेता से मुलाकात.”

प्रोफेसर काफर कहते हैं कि बहुत सारी दिक्कतों को ऐप में मामूली बदलाव करके ठीक किया जा सकता है. विशेषज्ञों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने कहा है कि ऐसी ऐप बनाना संभव है जो  .

प्रोफेसर काफर कहते हैं कि जब तक ये बदलाव नहीं हो जाते, तब तक वह तो ऐप डाउनलोड नहीं करेंगे पर वह बाकी लोगों को इस बारे में कोई सलाह देने से बचते हैं.

वह कहते हैं, “आपको ऐप डाउनलोड करनी चाहिए या नहीं, मुझे सच में नहीं पता. मेरे लिए यह मुश्किल सवाल है. मुझे लगता है कि सरकार ने प्राइवेसी से जुड़ीं कुछ चिंताएं तो ध्यान में रखी हैं. लेकिन कुछ बड़ी बातें अब भी छूट गई हैं. कुछ अच्छी चीजें हैं जैसे कि लोकेशन डेटा नहीं रिकॉर्ड होता और 21 दिन में सारा डेटा डिलीट हो जाएगा. जरूरी बात है कि निजता बहुत ही निजी चीज है. एक सूचना जो कुछ लोगों के लिए बहुत संवेदनशील होती है, दूसरे लोग उसकी परवाह भी नहीं करते. इसलिए मैं हां या ना में तो सिफारिश नहीं कर सकता लेकिन मैं फिलहाल इंतजार करने वाला हूं. तकनीकी और कानूनी पक्ष पर हमें थोड़ी और पारदर्शिता चाहिए.”

तो क्या आपको ऐप इन्स्टॉल करनी चाहिए?

COVIDSafe ऐप को जल्दबाजी में लॉन्च करने की एक खास वजह है. हम इस वक्त एक महामारी से गुजर रहे हैं. अगर हमें लॉकडाउन को हटाना है तो उन लोगों के बारे में जल्दी पता चलना चाहिए, जो करोनावायरस से संक्रमित हो सकते हैं.

यदि बड़ी संख्या में ऑस्ट्रेलियाई इस ऐप को डाउनलोड करें और सही तरीके से इस्तेमाल करें तो हो सकता है कि संकट से निपटने में मदद मिले. लेकिन सरकार का कहना है कि इस ऐप के प्रभावी होने के लिए जरूरी है कि कम से कम 40 फीसदी लोग इसे डाउनलोड करें. यानी करीब 12 लाख लोग. और उसके काफी करीब यानी करीब 10 लाख लोग तो सोमवार शाम तक ही इसे डाउनलोड कर चुके थे.

और यदि आपका फैसला निजता के अधिकार पर रुका है, तो जैसा कि प्रोफेसर काफर कहते हैं, यह आपका निजी फैसला है.

वह कहते हैं कि लोगों को इस दुविधा में डालना ही उन्हें परेशान करता है.

न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के ऐलन्स हब फॉर टेक्नॉलजी, लॉ ऐंड इनोवेशन में स्ट्रीम लीड डेविड वैले कहते हैं कि लोगों की सेहत की चिंता बहुत जरूरी बात है, इसलिए भी फैसला मुश्किल हो जाता है.

अगर आप ऐप को डाउनलोड ना करने का फैसला करते हैं तो याद रखिएगा कि इस ऐप में लगातार बदलाव और सुधार की गुंजाइश है. और उसके बारे में हम आपको बताते रहेंगे.
ऑस्ट्रेलिया में लोगो को एक-दूसरे से कम से कम 1.5 मीटर का फासला रखने की सलाह दी जा रही है. साथ ही केवल दो लोगों को ही एक साथ रहने की इजाज़त है बशर्ते कि वो अपने परिवार या घर वालों के साथ नहीं हैं. 

अगर आपको लगता है कि आप वायरस के संपर्क में आए हैं तो अपने डॉक्टर को कॉल करें, लेकिन उनके पास जाएं नहीं. या फिर राष्ट्रीय कोरोना वायरस स्वास्थ्य सूचना हॉटलाइन को 1800 020 080 पर संपर्क करें. 

अगर आपको सांस लेने में परेशानी हो रही है या आप कोई स्वास्थ्य संबंधी परेशानी महसूस कर रहे हैं तो 000 पर कॉल करें. 


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Published 28 April 2020 5:10pm
By Sam Langford
Presented by Vivek Kumar


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